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आज के विद्यार्थी के सामने स्वतंत्र भारत के निर्माण के जो लक्ष्य होने चाहिए, वह ऐसे होने चाहिए जो राष्ट्र को आगे की ओर ले जाने वाले हों, पीछे की तरफ नहीं। आधुनिक व्यवस्था में जो कुछ नापसंद है उसके लिए संघर्ष किया जाना चाहिए, जो कि आगे बढ़ने के लिए हो, पीछे मुड़ने के लिए नहीं, इसी का नाम प्रगति है।
महाविद्यालयी युवजन हमारी अगली और शिक्षित पीढ़ी होने के कारण देश और समाज में परिवर्तन लाने का जन्म सिद्ध अधिकार रखते हैं। युवा वर्ग के लिए मेरा यही संदेश है कि उनके समक्ष जो चुनौतियाँ मुँह बांयें खड़ी हैं, उनका निराकरण करने हेतु तत्पर रहें। अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत कर परिस्थितियों का मुकाबला करें। मैं विद्यार्थियों से यह अपेक्षा करता हूँ कि वे अपनी शिक्षा के क्रम में मानवीय मूल्यों एवं प्राकृतिक सम्पदाओं की रक्षा के लिए सदैव प्रयासरत् रहें। आज पाश्चात्य रंगों में रंगी संस्कृति ने संवेदना शून्यता की पराकाष्ठा को पार कर लिया है। मैं आशा एवं विश्वास करता हूँ कि आज के विद्यार्थी कल के स्वस्थ समाज के निर्माता बनेंगे तथा हमारी सांस्कृतिक धरोहर एवं मूल्यों के संरक्षण में श्लाघनीय योगदान देंगे।
Vice-Manager
Principal
विद्यार्थी गण हमारी अगली और शिक्षित पीढ़ी होने के कारण देश और समाज के परिवर्तन का जन्म सिद्ध अधिकार रखते हैं। यह परिवर्तन व्यक्तिगत, संस्थागत और सिद्धांतगत तीनों स्तर पर होता है। इसलिए परिवर्तन का नेतृत्व भी हर दौर में हर पीढ़ी को करना पड़ता है। यदि हमारी अगली पीढ़ी इस नेतृत्व के लिए पहले से तैयार है, उसने अपने विद्यार्थी जीवन में इस विषय पर पढ़ा लिखा और समझा है तो वह अपने उत्तरदायित्व का ज्यादा कुशलतापूर्वक निर्वहन कर सकेगी। यदि वह उसके लिए तैयार नहीं है तो वह समय पर राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं कर सकेगी। भयानक गलतियों और भटकाव का शिकार हो जायेगी। जिससे देश और समाज को कोई लाभ पहुँचने के बजाय उल्टी हानि होगी। हमारे स्कूलों और कॉलेजों में जो पाठ्यक्रम चलता है वह विद्यार्थियों को अच्छा नागरिक बनाने की बात तो करता है, उनको ज्ञानी और वैज्ञानिक भी बनाता है, उनको डाक्टर्स, इंजीनियर्स, और तकनीकी विशेषज्ञ, कर्मचारी और अफसर भी बनाता है, किन्तु देश और राष्ट्र के नेतृत्व के सवाल पर वह गौण रहता है। वह सकारात्मक रूप से इस विषय में कुछ नहीं कहता है। इसलिए देश की समस्याओं के समाधान की बात, उसमें वैकल्पिक प्रणाली लागू करने वाली बात, देश और समाज को बेहतर बनाने की बात, उसमें आवश्यक परिवर्तन लाने की बात पर विद्यार्थियों को अपने अध्ययन काल में ही चिन्तन और मनन करके दृष्टिकोण बना लेना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब विद्यार्थी राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं पर खुले रूप से विचारों का आदान-प्रदान करें और धीरे-धीरे अपने दृष्टिकोण के निर्माण की प्रक्रिया से गुजर कर एक मजबूत कटिबद्ध दृष्टिकोण और मजबूत चरित्र का निर्माण करें।
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A small river named Duden flows by their place and supplies it with the necessary regelialia. It is a paradise
The search for eternal youth has to be a human imagination since times accident the search for eternal .
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